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राएगाँ औक़ात खो कर हैफ़ खाना है अबस - वलीउल्लाह मुहिब कविता - Darsaal

राएगाँ औक़ात खो कर हैफ़ खाना है अबस

राएगाँ औक़ात खो कर हैफ़ खाना है अबस

ख़ूब-रूयों से जहाँ के दिल लगाना है अबस

कारगर होगा तिरा अफ़्सूँ ये बावर है तुझे

उस परी पर ऐ दिल-ए-वहशी दिवाना है अबस

जीते फिर आने की पहले रख तवक़्क़ो' दिल से दूर

वर्ना कूचे में सितम-गारों के जाना है अबस

ख़ाक हो कर एक सूरत है गदा-ओ-शाह की

गर मुआफ़िक़ तुझ से ऐ मुनइ'म ज़माना है अबस

याद किस को रहम जी में कब दिमाग़-ओ-दिल कहाँ

याँ न आने का मिरे साहब बहाना है अबस

दिल-शिकन है सुब्ह-दम तेरा ही गुलचीं बाग़ में

आशियाँ ऐ अंदलीब उस जा बनाना है अबस

ऐ गुल-ए-ख़ंदाँ सबात-ए-उम्र है शबनम से कम

याँ बहार-ए-रंग पर हँसना हँसाना है अबस

वाँ फिरे हैं तरकश-ए-मिज़्गाँ तलाश-ए-सैद पर

याँ तिरा दिल तीर-ए-हसरत का निशाना है अबस

आबरू कहते हैं जिस को है 'मुहिब' इक क़तरा आब

जब ढलक जावे तो फिर उस का उठाना है अबस

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In Hindi By Famous Poet Waliullah Muhib. is written by Waliullah Muhib. Complete Poem in Hindi by Waliullah Muhib. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.