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पहले सफ़-ए-उश्शाक़ में मेरा ही लहू चाट - वलीउल्लाह मुहिब कविता - Darsaal

पहले सफ़-ए-उश्शाक़ में मेरा ही लहू चाट

पहले सफ़-ए-उश्शाक़ में मेरा ही लहू चाट

शमशीर-निगह तेरी ने क्या क्या न किया काट

गुलशन में हँसी देख के उस गुल की यकायक

हसरत से गए ग़ुंचों के यक-लख़्त जिगर फाट

इतना भी दिया सब्र न उस नफ़्स-दनी को

कुत्ते की तरह बैठता क़िस्मत का दिया चाट

धुलवाइए क्या जामा-ए-इस्याँ को बसाओ

चल कूच में दरिया के किनारे हैं खड़े घाट

हो ग़ल्ला-ए-ख़िल्क़त से न सौदा-ए-मोहब्बत

है इश्क़ की दुक्कान सो बनिए की नहीं हाट

इक पश्म-नज़र उन की में है शाल दो-शाला

जो बैठे बिछा बोरिया और ओढ़ लिया टाट

सत्तर दो बहत्तर हैं तरीक़ उन से अलाहदा

है इश्क़ की मंज़िल की जुदी राह जुदी बाट

इश्क़िया कहे शे'र ओ या मदह-ओ-मनाक़िब

आलम का बनवाड़ा कहे शाइर नहीं है भाट

तब रफ़अ' ख़लिश होए मियाँ दिल से 'मुहिब' के

कहते हैं सो तुझ से कहे दिल खोल के दुख बाट

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In Hindi By Famous Poet Waliullah Muhib. is written by Waliullah Muhib. Complete Poem in Hindi by Waliullah Muhib. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.