नहीं दुनिया में सिवा ख़ार-ओ-ख़स-ए-कूचा-ए-दोस्त
नहीं दुनिया में सिवा ख़ार-ओ-ख़स-ए-कूचा-ए-दोस्त
सर-ए-शोरीदा की ख़्वाहिश ब-कुलाहे गाहे
ख़ून-ए-उश्शाक़ का दावा मिरे क़ातिल तुझ पर
होते इसबात न देखा ब-गवाहे गाहे
है बहार आने की कुछ धूम कि आगे तो न था
दिल-ए-दीवाना ब-ईं हाल-ए-तबाहे गाहे
रहते किस शोहरे में हो तुम से तो मिलना प्यारे
इत्तिफ़ाक़िया है बा'द अज़ दो सह माहे गाहे
हम तमाज़त में तिरे हुक्म से लें हैं साक़ी
साया-ए-ताक में यक-लहज़ा पनाहे गाहे
हम गदाओं को है तस्लीम-ओ-रज़ा से सरोकार
मुल्तजी हैं न ज़े-मुनइ'म ने ज़े-शाहे गाहे
बे-ज़बाँ कुलह-ए-सब्ज़ी की जगह ऐ नौ-ख़त
न उगा ख़ाक से मेरी पर-ए-काहे गाहे
ऐ 'मुहिब' जुर्म-ए-मोहब्बत के सिवा आलम में
क़त्ल-ए-आशिक़ ही सुना है ब-गुनाहे गाहे
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