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हर आन यास बढ़नी हर दम उमीद घटनी - वलीउल्लाह मुहिब कविता - Darsaal

हर आन यास बढ़नी हर दम उमीद घटनी

हर आन यास बढ़नी हर दम उमीद घटनी

दिन हश्र का है अब तो फ़ुर्क़त की रात कटनी

पौ फाटना नहीं ये मुझ सीना-चाक के है

हर सुब्ह बार-ए-ग़म से छाती फ़लक की फटनी

कूचे में उस के बाक़ी मुझ ख़ाकसार पर अब

या आसमाँ है गिरना या है ज़मीन फटनी

मिज़्गाँ की बर्छियों ने दिल को तो छान मारा

अब बोटियाँ हैं बाक़ी उन पर जिगर की बटनी

ख़त की स्याही ने आ घेरी सबाहत-ए-हुस्न

इस रोम से है मुश्किल ये फ़ौज-ए-ज़ंग हटनी

ज़ुल्फ़-ए-सियह में ऐ दिल बिखरा न माया-जाँ

ये जिंस तीरा-शब में मुश्किल है फिर सिमटनी

ख़ून-ए-जिगर का खाना दिल पर नहीं गवारा

इन तुर्श अब्रुओं की जब तक न होए चटनी

आईना कह रहा है ख़ूबों के साफ़ मुँह पर

हैं एक दिन ये शक्लें सब ख़ाक बीच अटनी

रंगीं है यूँ बुतों की कैफ़-ए-निगह की गर्दिश

जूँ बुर्ज की फिरे है होली में मस्त जटनी

क्या पस्त फ़ितरतों को बख़्शे है सर-बुलंदी

दुनिया के शो'बदे से ता'लीम होए नटनी

तू ने 'मुहिब' बिठाए ये क़ाफ़िए वगर्ना

पाए क़लम को यकसर है ये ज़मीं रपटनी

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In Hindi By Famous Poet Waliullah Muhib. is written by Waliullah Muhib. Complete Poem in Hindi by Waliullah Muhib. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.