शिताब खो गई पीरी जवानी दो दिन की
शिताब खो गई पीरी जवानी दो दिन की
छुपी सहर में शब-ए-कामरानी दो दिन की
किसी की हात में दिल दे के पाँव लग (सो) रहिए
ख़ुशी से क्यूँ न कटे ज़िंदगानी दो दिन की
ये दिल को लगते ही तोड़ा जो उन ने सो गए बख़्त
मेरे नसीबों की रह गई कहानी दो दिन की
उसे मैं तौफ़ के हल्क़ा में घेरे रक्खा था
अजब थी उस पे मिरी पासबानी दो दिन की
ये दाग़-ए-दिल लिए जाऊँगा गोर में 'उज़लत'
मोहब्बत उस की थी सो भी ज़बानी दो दिन की
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