फूँक दे है मुँह तिरा हर साफ़-दिल के तन में आग
फूँक दे है मुँह तिरा हर साफ़-दिल के तन में आग
सामने ख़ुर्शीद के लगती है जो दर्पन में आग
तुझ से ऐ बुलबुल ज़ियादा गुल में है तासीर-ए-इश्क़
दिल में ख़ूँ लब पर हँसी है उस के पैराहन में आग
अहल-ए-ज़र साज़-ए-रऊनत से होवेंगे दोज़ख़ी
डालते हैं शम्अ की अव्वल रग-ए-गर्दन में आग
कोहकन लाला से ख़ूँ तेरा है जोशाँ ब'अद साल
बे-सुतूँ के देख दाएम है भरी दामन में आग
सोज़-ए-हिज्र-ए-कान्हा से जो साँवला था 'उज़लत' आह
दाग़दार आख़िर लगी टेसू के बिंद्राबन में आग
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