नयन में ख़ूँ भर आया दिल में ख़ार-ए-ग़म छुपा शायद
नयन में ख़ूँ भर आया दिल में ख़ार-ए-ग़म छुपा शायद
हुआ इस दम वो तेग़-अबरू किसी से आश्ना शायद
गले लगता था हर गर्द-ए-हवा-आवुर्द से मजनूँ
कि ख़ाक-ए-कूचा-ए-लैला ले आई हो सबा शायद
क़यामत पा-नमक है ग़ुल दिवानों का गुलिस्ताँ में
उन्हों के ज़ख़्म-ए-दिल पर शोर-ए-बुलबुल जा गिरा शायद
हमारे हाथ इक मू गई नईं और पेच खाती है
वो दाम-ए-ज़ुल्फ़ में ताज़ा शिकार-ए-दिल फँसा शायद
बहुत मुँह पर वो ज़ुल्फ़ें आज बिखराता है ऐ 'उज़लत'
वो गालों पर किसी का ज़ख़्म-ए-दंदाँ है लगा शायद
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