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नयन में ख़ूँ भर आया दिल में ख़ार-ए-ग़म छुपा शायद - वली उज़लत कविता - Darsaal

नयन में ख़ूँ भर आया दिल में ख़ार-ए-ग़म छुपा शायद

नयन में ख़ूँ भर आया दिल में ख़ार-ए-ग़म छुपा शायद

हुआ इस दम वो तेग़-अबरू किसी से आश्ना शायद

गले लगता था हर गर्द-ए-हवा-आवुर्द से मजनूँ

कि ख़ाक-ए-कूचा-ए-लैला ले आई हो सबा शायद

क़यामत पा-नमक है ग़ुल दिवानों का गुलिस्ताँ में

उन्हों के ज़ख़्म-ए-दिल पर शोर-ए-बुलबुल जा गिरा शायद

हमारे हाथ इक मू गई नईं और पेच खाती है

वो दाम-ए-ज़ुल्फ़ में ताज़ा शिकार-ए-दिल फँसा शायद

बहुत मुँह पर वो ज़ुल्फ़ें आज बिखराता है ऐ 'उज़लत'

वो गालों पर किसी का ज़ख़्म-ए-दंदाँ है लगा शायद

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In Hindi By Famous Poet Wali Uzlat. is written by Wali Uzlat. Complete Poem in Hindi by Wali Uzlat. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.