मिरे नज़'अ को मत उस से कहो हुआ सो हुआ
मिरे नज़'अ को मत उस से कहो हुआ सो हुआ
कि दिल-दहिन्दा जियो या मरो हुआ सो हुआ
जला दिया जो पतंग अब न रो हुआ सो हुआ
ऐ शम्अ' सुब्ह को जो हो सो हो हुआ सो हुआ
दिल इस कूँ दे चुका दीवानगी न छोड़ूँगा
ऐ तिफ़लो पथरों से मारो हँसो हुआ सो हुआ
मुझे रुला के ख़ूँ आँसू न पोंछ ख़ौफ़ ये है
तू हाथ मेरे लहू से न धो हुआ सो हुआ
बिछाईं पलकें जो मैं ने न आया कह भेजा
अब आगे राह में काँटे न बो हुआ सो हुआ
किया है क़त्ल जो 'उज़लत' को अब न रो ऐ यार
कि सर पे हुस्न-परस्तों के जो हुआ सो हुआ
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