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मैं वो मजनूँ हूँ कि आबाद न उजड़ा समझूँ - वली उज़लत कविता - Darsaal

मैं वो मजनूँ हूँ कि आबाद न उजड़ा समझूँ

मैं वो मजनूँ हूँ कि आबाद न उजड़ा समझूँ

मुश्त-ए-ख़ाक अपनी उड़ा कर उसे सहरा समझूँ

इस क़दर महव हूँ इन शोला-रुख़ों का जूँ शम्अ

कि न जलने को पहचानूँ न तमाशा समझूँ

चश्मक-ए-यार हैं मुझ शम्अ के हक़ में गुल-गीर

दम ये क़ैंची के मैं अन्फ़ास-ए-मसीहा समझूँ

गर्दिश-ए-चश्म-ए-सजन ले गया ख़ातिर से ग़ुबार

उस को दश्त-ए-दिल-ए-'उज़लत' का बगूला समझूँ

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In Hindi By Famous Poet Wali Uzlat. is written by Wali Uzlat. Complete Poem in Hindi by Wali Uzlat. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.