Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_49491990c67fad299d9cb277fae2e411, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
मैं वो मजनूँ हूँ कि आबाद न उजड़ा समझूँ - वली उज़लत कविता - Darsaal

मैं वो मजनूँ हूँ कि आबाद न उजड़ा समझूँ

मैं वो मजनूँ हूँ कि आबाद न उजड़ा समझूँ

मुश्त-ए-ख़ाक अपनी उड़ा कर उसे सहरा समझूँ

इस क़दर महव हूँ इन शोला-रुख़ों का जूँ शम्अ

कि न जलने को पहचानूँ न तमाशा समझूँ

चश्मक-ए-यार हैं मुझ शम्अ के हक़ में गुल-गीर

दम ये क़ैंची के मैं अन्फ़ास-ए-मसीहा समझूँ

गर्दिश-ए-चश्म-ए-सजन ले गया ख़ातिर से ग़ुबार

उस को दश्त-ए-दिल-ए-'उज़लत' का बगूला समझूँ

(522) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Wali Uzlat. is written by Wali Uzlat. Complete Poem in Hindi by Wali Uzlat. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.