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ख़ुदा किसी कूँ किसी साथ आश्ना न करे - वली उज़लत कविता - Darsaal

ख़ुदा किसी कूँ किसी साथ आश्ना न करे

ख़ुदा किसी कूँ किसी साथ आश्ना न करे

वगर्ना यार कूँ आशिक़ सूँ बेवफ़ा न करे

भली हवा-ए-क़यामत अज़ाब-ए-हश्र की सुल्ह

वले किसी को ख़ुदा किस का मुब्तला न करे

सुन इल्तिमास न कर अब सूँ तूँ जुदा मुझ को

रुला न हँस के तूँ कह कह ''अजी ख़ुदा न करे''

किसी सनम कूँ ऐ ज़ाहिद तूँ दिल न दे बोझा

वो बंदा किया जो मुक़र्रर कोई ख़ुदा न करे

तिरी निगाह-ए-ख़ुनुक ने जो दिल सूँ गर्मी की

कली उपर ये नवाज़िश कभू सबा न करे

लगा चुराने वो क़स्साब हम सूँ ख़ंजर-ए-चश्म

हमारे हक़ में कोई ख़ैर की दुआ न करे

मुहीत-ए-यास में तुम ने डुबाई कश्ती-ए-दिल

ख़ुदा किसी कूँ ख़ुदा-फ़हम ना-ख़ुदा न करे

चमन में देख कहा मुझ को पी ने आँख दिखा

मरीज़-ए-इश्क़ की दारू यही दवा न करे

किसी कूँ हक़ न करे शाम-ए-हिज्र-ए-यार की शम्अ'

किसे बग़ैर अजल रंजा-ए-फ़ना न करे

दिया पतंग कूँ गर्म-उल्फ़ती सूँ सोज़ाँ है

वो जुज़-दुआ दिल-ए-आशिक़ बने दुआ न करे

जो तेग़-ए-अबरू-ए-जानाँ का साया-पर्वर है

वो 'उज़लत' आरज़ू-ए-शहपर-ए-हुमा न करे

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In Hindi By Famous Poet Wali Uzlat. is written by Wali Uzlat. Complete Poem in Hindi by Wali Uzlat. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.