ख़ुदा ही पहुँचे फ़रियादों को हम से बे-नसीबों के
ख़ुदा ही पहुँचे फ़रियादों को हम से बे-नसीबों के
हमारे दिल कबाब और तू पिए प्याले रक़ीबों के
ख़िज़ाँ में बर्ग-ए-गुल और ख़ार-ओ-ख़स नहिं सेहन-ए-गुलशन में
पड़े हैं लख़्त-ए-दिल और टूटे नाले अंदलीबों के
बहार आई दिवानो सुनते हो बुलबुल की फ़रियादें
ये आवाज़े हैं फ़ौज-ए-मौसम-ए-गुल के नक़ीबों के
इलाही दे निगाह-ए-लुत्फ़ ख़ुश-चश्मों को इक पल भी
कि हम बीमार मर गए नाज़ उठाते इन तबीबों के
नगीं के तर्ज़ फिर जाता है नाम-ए-'उज़लत' उस लब पर
असर में बे-सुख़न मेरे हैं बरगश्ता नसीबों के
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