हँसूँ जूँ गुल तिरे ज़ख़्मों से उल्फ़त इस को कहते हैं
हँसूँ जूँ गुल तिरे ज़ख़्मों से उल्फ़त इस को कहते हैं
तू गाली दे दुआओं में मोहब्बत उस को कहते हैं
नहीं ग़म हश्र का हर-चंद आफ़त इस को कहते हैं
फिरूँ यारों का मुँह देखूँ क़यामत इस को कहते हैं
मिरे सैलाब-अश्कों में बहे दुनिया, प जूँ साया
न सरका मैं जगह से इस्तक़ामत इस को कहते हैं
अता कर सीम शबनम जूँ हँसी सुब्ह अपने एहसाँ पर
गिरह हुई गुल की पेशानी पर इज़्ज़त इस को कहते हैं
दम-ए-रौशन-दिली जो मारते हैं शम्अ से ज़ाहिद
कटे से नाक सरकश-तर हैं ज़िल्लत इस को कहते हैं
बगूले सा उड़ाता धूल 'उज़लत' वज्द करता है
सर-ए-बाज़ार रुस्वाई में ख़ल्वत इस को कहते हैं
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