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बहार आई ब-तंग आया दिल-ए-वहशत-पनाह अपना - वली उज़लत कविता - Darsaal

बहार आई ब-तंग आया दिल-ए-वहशत-पनाह अपना

बहार आई ब-तंग आया दिल-ए-वहशत-पनाह अपना

करूँ क्या है यही चाक-ए-गरेबाँ दस्तगाह अपना

टपकती जो तरह सुम्बुल से होवे पै-ब-पै शबनम

हमारे हाल पर रोने लगा अब दूद-ए-आह अपना

मिरा दिल लेते ही कर चश्म-पोशी मुझ से मुँह फेरा

नज़र आता नहीं कुछ मुझ को दिलबर से निबाह अपना

सितम से दी तसल्ली उस कमाँ-अबरू के क़ुर्बां हूँ

रग-ए-जाँ कर दिया दिल को मिरे तीर-ए-निगाह अपना

तू हरजाई न हो घट जाएगा जूँ ज़र अयारों में

ये 'उज़लत' बंदा अपना फ़िदवी अपना ख़ैर-ख़्वाह अपना

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In Hindi By Famous Poet Wali Uzlat. is written by Wali Uzlat. Complete Poem in Hindi by Wali Uzlat. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.