अरे उल्टे ज़माने मुझ पे क्या सीधा सितम लाया
अरे उल्टे ज़माने मुझ पे क्या सीधा सितम लाया
नयन मेरे थे पी का घर सो रू-ए-हिज्र दिखलाया
चमन का शहर फ़स्ल-ए-गुल में जब आबाद था 'उज़लत'
सबा के रंग में गुल-गश्त कर हज़्ज़-ए-जुनूँ पाया
जो देखूँ जा ख़िज़ाँ में हाए ख़ारिस्तान ओ पतझड़ था
न ग़ुंचे थे न गुल ने बुलबुलें ने बेद का साया
बहुत से ज़ाग़ ओ चुग़दों का था ग़ुल ग़ौग़ों का ग़ौग़ा था
फ़लक की जान को रो कर मैं अपना सर ले फिर आया
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