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ऐ नासेह चश्म-ए-तर से मत कर आँसू पाक रहने दे - वली उज़लत कविता - Darsaal

ऐ नासेह चश्म-ए-तर से मत कर आँसू पाक रहने दे

ऐ नासेह चश्म-ए-तर से मत कर आँसू पाक रहने दे

अरे बेदर्द रोने में मुझे बेबाक रहने दे

बरस मत अब्र मिट जागा बघोला ख़ाक-ए-मजनूँ का

ख़ुदा के वास्ते दश्त-ए-जुनूँ की नाक रहने दे

दिल-ए-ज़ख़्मी है शाएक़ बू-ए-गुल और शोर-ए-बुलबुल का

रफ़ू-गर फ़स्ल-ए-गुल में ये गरेबाँ चाक रहने दे

ये ताक़त नज़्र है ऐ ना-तवानी पर बहारों में

मिरे हाथों को चाक-ए-जेब पर चालाक रहने दे

नसीहत मुझ को तर्क-ए-इश्क़ की कुछ फ़र्ज़ नहीं तुझ पर

न छोड़ ऐ शैख़ सुन्नत मुँह में नित मिसवाक रहने दे

उड़ा मत ऐ नसीम-ए-बाग़-ए-जन्नत क्या करूँ तुझ को

मिरे सर पर ज़रा पी की गली की ख़ाक रहने दे

अगर जूँ शम्अ-दीद-ए-शो'ला-रूयाँ चाहिए 'उज़लत'

नज़ारा ता न जल जा चश्म को नमनाक रहने दे

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In Hindi By Famous Poet Wali Uzlat. is written by Wali Uzlat. Complete Poem in Hindi by Wali Uzlat. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.