याद करना हर घड़ी तुझ यार का
है वज़ीफ़ा मुझ दिल-ए-बीमार का
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तिरा लब देख हैवाँ याद आवे
तुझ लब की सिफ़त लाल-ए-बदख़्शाँ सूँ कहूँगा
ख़ूब-रू ख़ूब काम करते हैं
तेरे लब के हुक़ूक़ हैं मुझ पर
इश्क़ में सब्र-ओ-रज़ा दरकार है
आरज़ू-ए-चश्मा-ए-कौसर नईं
तख़्त जिस बे-ख़ानमाँ का दस्त-ए-वीरानी हुआ
मत ग़ुस्से के शो'ले सूँ जलते कूँ जलाती जा
हुआ ज़ाहिर ख़त-ए-रू-ए-निगार आहिस्ता-आहिस्ता
आज दिस्ता है हाल कुछ का कुछ
जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे
मुश्ताक़ हैं उश्शाक़ तिरी बाँकी अदा के