तुझ लब की सिफ़त लाल-ए-बदख़्शाँ सूँ कहूँगा
जादू हैं तिरे नैन ग़ज़ालाँ सूँ कहूँगा
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मुफ़्लिसी सब बहार खोती है
जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे
आरज़ू-ए-चश्मा-ए-कौसर नईं
याद करना हर घड़ी उस यार का
न हो क्यूँ शोर दिल की बाँसुली में
मुश्ताक़ हैं उश्शाक़ तिरी बाँकी अदा के
मत ग़ुस्से के शो'ले सूँ जलते कूँ जलाती जा
किया मुझ इश्क़ ने ज़ालिम कूँ आब आहिस्ता आहिस्ता
किशन की गोपियाँ की नईं है ये नस्ल
जब तुझ अरक़ के वस्फ़ में जारी क़लम हुआ
छुपा हूँ मैं सदा-ए-बाँसुली में