तेरे लब के हुक़ूक़ हैं मुझ पर
क्यूँ भुला दूँ मैं दिल से हक़्क़-ए-नमक
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सजन टुक नाज़ सूँ मुझ पास आ आहिस्ता आहिस्ता
मुफ़लिसी सब बहार खोती है
गुल हुए ग़र्क़ आब-ए-शबनम में
वो नाज़नीं अदा में एजाज़ है सरापा
राह-ए-मज़मून-ए-ताज़ा बंद नहीं
मुश्ताक़ हैं उश्शाक़ तिरी बाँकी अदा के
जिस दिलरुबा सूँ दिल कूँ मिरे इत्तिहाद है
मुफ़्लिसी सब बहार खोती है
मत ग़ुस्से के शो'ले सूँ जलते कूँ जलाती जा
शग़्ल बेहतर है इश्क़-बाज़ी का
न हो क्यूँ शोर दिल की बाँसुली में
हर ज़र्रा उस की चश्म में लबरेज़-ए-नूर है