रश्क सूँ तुझ लबाँ की सुर्ख़ी पर
जिगर-ए-लाला दाग़ दाग़ हुआ
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तेरे लब के हुक़ूक़ हैं मुझ पर
मुफ़लिसी सब बहार खोती है
दिल हुआ है मिरा ख़राब-ए-सुख़न
राह-ए-मज़मून-ए-ताज़ा बंद नहीं
गुल हुए ग़र्क़ आब-ए-शबनम में
मुश्ताक़ हैं उश्शाक़ तिरी बाँकी अदा के
देखना हर सुब्ह तुझ रुख़्सार का
हुए हैं राम पीतम के नयन आहिस्ता-आहिस्ता
मत ग़ुस्से के शो'ले सूँ जलते कूँ जलाती जा
जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे
न हो क्यूँ शोर दिल की बाँसुली में
तिरा मजनूँ हूँ सहरा की क़सम है