राह-ए-मज़मून-ए-ताज़ा बंद नहीं
ता क़यामत खुला है बाब-ए-सुख़न
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मुश्ताक़ हैं उश्शाक़ तिरी बाँकी अदा के
याद करना हर घड़ी उस यार का
गुल हुए ग़र्क़ आब-ए-शबनम में
सजन टुक नाज़ सूँ मुझ पास आ आहिस्ता आहिस्ता
तुझ लब की सिफ़त लाल-ए-बदख़्शाँ सूँ कहूँगा
न हो क्यूँ शोर दिल की बाँसुली में
छुपा हूँ मैं सदा-ए-बाँसुली में
मैं आशिक़ी में तब सूँ अफ़्साना हो रहा हूँ
हुआ ज़ाहिर ख़त-ए-रू-ए-निगार आहिस्ता-आहिस्ता
आशिक़ के मुख पे नैन के पानी को देख तूँ
जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे
आज तुझ याद ने ऐ दिलबर-ए-शीरीं-हरकात