फिर मेरी ख़बर लेने वो सय्याद न आया
शायद कि मिरा हाल उसे याद न आया
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दिल हुआ है मिरा ख़राब-ए-सुख़न
देखना हर सुब्ह तुझ रुख़्सार का
हर ज़र्रा उस की चश्म में लबरेज़-ए-नूर है
जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे
भड़के है दिल की आतिश तुझ नेह की हवा सूँ
याद करना हर घड़ी तुझ यार का
रश्क सूँ तुझ लबाँ की सुर्ख़ी पर
जब तुझ अरक़ के वस्फ़ में जारी क़लम हुआ
किया मुझ इश्क़ ने ज़ालिम कूँ आब आहिस्ता आहिस्ता
हुए हैं राम पीतम के नयन आहिस्ता-आहिस्ता
मुश्ताक़ हैं उश्शाक़ तिरी बाँकी अदा के