मुफ़लिसी सब बहार खोती है
मर्द का ए'तिबार खोती है
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Parveen Shakir
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1289) Peoples Rate This
दिल-ए-उश्शाक़ क्यूँ न हो रौशन
याद करना हर घड़ी उस यार का
अगर गुलशन तरफ़ वो नौ-ख़त-ए-रंगीं-अदा निकले
दिल कूँ तुझ बाज बे-क़रारी है
मत ग़ुस्से के शो'ले सूँ जलते कूँ जलाती जा
किशन की गोपियाँ की नईं है ये नस्ल
मुफ़्लिसी सब बहार खोती है
तख़्त जिस बे-ख़ानमाँ का दस्त-ए-वीरानी हुआ
ऐ नूर-ए-जान-ओ-दीदा तिरे इंतिज़ार में
शग़्ल बेहतर है इश्क़-बाज़ी का
फिर मेरी ख़बर लेने वो सय्याद न आया
तुझ लब की सिफ़त लाल-ए-बदख़्शाँ सूँ कहूँगा