ख़ूब-रू ख़ूब काम करते हैं
यक निगह में ग़ुलाम करते हैं
Wasi Shah
Ahmad Faraz
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Rahat Indori
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Jaun Eliya
Allama Iqbal
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Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
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मैं आशिक़ी में तब सूँ अफ़्साना हो रहा हूँ
हुए हैं राम पीतम के नयन आहिस्ता-आहिस्ता
मुफ़लिसी सब बहार खोती है
गुल हुए ग़र्क़ आब-ए-शबनम में
दिल हुआ है मिरा ख़राब-ए-सुख़न
छुपा हूँ मैं सदा-ए-बाँसुली में
सोहबत-ए-ग़ैर मूं जाया न करो
अगर गुलशन तरफ़ वो नौ-ख़त-ए-रंगीं-अदा निकले
राह-ए-मज़मून-ए-ताज़ा बंद नहीं
रश्क सूँ तुझ लबाँ की सुर्ख़ी पर
जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे
दिल-ए-उश्शाक़ क्यूँ न हो रौशन