गुल हुए ग़र्क़ आब-ए-शबनम में
देख उस साहिब-ए-हया की अदा
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हर ज़र्रा उस की चश्म में लबरेज़-ए-नूर है
सजन टुक नाज़ सूँ मुझ पास आ आहिस्ता आहिस्ता
दिल कूँ तुझ बाज बे-क़रारी है
मत ग़ुस्से के शो'ले सूँ जलते कूँ जलाती जा
आरज़ू-ए-चश्मा-ए-कौसर नईं
आशिक़ के मुख पे नैन के पानी को देख तूँ
तिरा लब देख हैवाँ याद आवे
चाहता है इस जहाँ में गर बहिश्त
भड़के है दिल की आतिश तुझ नेह की हवा सूँ
इश्क़ बेताब-ए-जाँ-गुदाज़ी है
जब तुझ अरक़ के वस्फ़ में जारी क़लम हुआ
अगर गुलशन तरफ़ वो नौ-ख़त-ए-रंगीं-अदा निकले