दिल-ए-उश्शाक़ क्यूँ न हो रौशन
जब ख़याल-ए-सनम चराग़ हुआ
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चाहता है इस जहाँ में गर बहिश्त
ख़ूब-रू ख़ूब काम करते हैं
ऐ नूर-ए-जान-ओ-दीदा तिरे इंतिज़ार में
न हो क्यूँ शोर दिल की बाँसुली में
दिल तलबगार-ए-नाज़-ए-मह-वश है
जब सनम कूँ ख़याल-ए-बाग़ हुआ
छुपा हूँ मैं सदा-ए-बाँसुली में
दिल हुआ है मिरा ख़राब-ए-सुख़न
फिर मेरी ख़बर लेने वो सय्याद न आया
सजन टुक नाज़ सूँ मुझ पास आ आहिस्ता आहिस्ता
हुआ ज़ाहिर ख़त-ए-रू-ए-निगार आहिस्ता-आहिस्ता
इश्क़ बेताब-ए-जाँ-गुदाज़ी है