ऐ नूर-ए-जान-ओ-दीदा तिरे इंतिज़ार में
मुद्दत हुई पलक सूँ पलक आश्ना नईं
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किया मुझ इश्क़ ने ज़ालिम कूँ आब आहिस्ता आहिस्ता
तिरा लब देख हैवाँ याद आवे
याद करना हर घड़ी तुझ यार का
मुफ़्लिसी सब बहार खोती है
तिरा मजनूँ हूँ सहरा की क़सम है
जब सनम कूँ ख़याल-ए-बाग़ हुआ
याद करना हर घड़ी उस यार का
हर ज़र्रा उस की चश्म में लबरेज़-ए-नूर है
मुश्ताक़ हैं उश्शाक़ तिरी बाँकी अदा के
वो नाज़नीं अदा में एजाज़ है सरापा
सोहबत-ए-ग़ैर मूं जाया न करो
राह-ए-मज़मून-ए-ताज़ा बंद नहीं