आज तुझ याद ने ऐ दिलबर-ए-शीरीं-हरकात
आह को दिल के उपर तेशा-ए-फ़रहाद किया
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हुआ ज़ाहिर ख़त-ए-रू-ए-निगार आहिस्ता-आहिस्ता
आरज़ू-ए-चश्मा-ए-कौसर नईं
मुफ़्लिसी सब बहार खोती है
किशन की गोपियाँ की नईं है ये नस्ल
तुझ लब की सिफ़त लाल-ए-बदख़्शाँ सूँ कहूँगा
तख़्त जिस बे-ख़ानमाँ का दस्त-ए-वीरानी हुआ
इश्क़ में सब्र-ओ-रज़ा दरकार है
मैं आशिक़ी में तब सूँ अफ़्साना हो रहा हूँ
हुए हैं राम पीतम के नयन आहिस्ता-आहिस्ता
इश्क़ बेताब-ए-जाँ-गुदाज़ी है
तेरे लब के हुक़ूक़ हैं मुझ पर
आज दिस्ता है हाल कुछ का कुछ