आज तेरी भवाँ ने मस्जिद में
होश खोया है हर नमाज़ी का
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छुपा हूँ मैं सदा-ए-बाँसुली में
आज तुझ याद ने ऐ दिलबर-ए-शीरीं-हरकात
तिरा मजनूँ हूँ सहरा की क़सम है
ऐ नूर-ए-जान-ओ-दीदा तिरे इंतिज़ार में
मैं आशिक़ी में तब सूँ अफ़्साना हो रहा हूँ
दिल तलबगार-ए-नाज़-ए-मह-वश है
जिस दिलरुबा सूँ दिल कूँ मिरे इत्तिहाद है
न हो क्यूँ शोर दिल की बाँसुली में
तुझ लब की सिफ़त लाल-ए-बदख़्शाँ सूँ कहूँगा
ख़ूब-रू ख़ूब काम करते हैं
मुश्ताक़ हैं उश्शाक़ तिरी बाँकी अदा के