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तिरा मजनूँ हूँ सहरा की क़सम है - वली मोहम्मद वली कविता - Darsaal

तिरा मजनूँ हूँ सहरा की क़सम है

तिरा मजनूँ हूँ सहरा की क़सम है

तलब में हूँ तमन्ना की क़सम है

सरापा नाज़ है तू ऐ परी-रू

मुझे तेरे सरापा की क़सम है

दिया हक़ हुस्न-ए-बाला-दस्त तुजकूं

मुझे तुझ सर्व-ए-बाला की क़सम है

किया तुझ ज़ुल्फ़ ने जग कूँ दिवाना

तिरी ज़ुल्फ़ाँ के सौदा की क़सम है

दो-रंगी तर्क कर हर इक से मत मिल

तुझे तुझ क़द्द-ए-राना की क़सम है

किया तुझ इश्क़ ने आलम कूँ मजनूँ

मुझे तुझ रश्क-ए-लैला की क़सम है

'वली' मुश्ताक़ है तेरी निगह का

मुझे तुझ चश्म-ए-शहला की क़सम है

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In Hindi By Famous Poet Wali Mohammad Wali. is written by Wali Mohammad Wali. Complete Poem in Hindi by Wali Mohammad Wali. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.