वली मोहम्मद वली कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का वली मोहम्मद वली
नाम | वली मोहम्मद वली |
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अंग्रेज़ी नाम | Wali Mohammad Wali |
जन्म की तारीख | 1667 |
मौत की तिथि | 1725 |
जन्म स्थान | Deccan |
याद करना हर घड़ी तुझ यार का
तुझ लब की सिफ़त लाल-ए-बदख़्शाँ सूँ कहूँगा
तेरे लब के हुक़ूक़ हैं मुझ पर
रश्क सूँ तुझ लबाँ की सुर्ख़ी पर
राह-ए-मज़मून-ए-ताज़ा बंद नहीं
फिर मेरी ख़बर लेने वो सय्याद न आया
न हो क्यूँ शोर दिल की बाँसुली में
मुफ़लिसी सब बहार खोती है
किशन की गोपियाँ की नईं है ये नस्ल
ख़ूब-रू ख़ूब काम करते हैं
जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे
जामा-ज़ेबों को क्यूँ तजूँ कि मुझे
हर ज़र्रा उस की चश्म में लबरेज़-ए-नूर है
गुल हुए ग़र्क़ आब-ए-शबनम में
दिल-ए-उश्शाक़ क्यूँ न हो रौशन
देखना हर सुब्ह तुझ रुख़्सार का
छुपा हूँ मैं सदा-ए-बाँसुली में
चाहता है इस जहाँ में गर बहिश्त
ऐ नूर-ए-जान-ओ-दीदा तिरे इंतिज़ार में
आरज़ू-ए-चश्मा-ए-कौसर नईं
आज तुझ याद ने ऐ दिलबर-ए-शीरीं-हरकात
आज तेरी भवाँ ने मस्जिद में
याद करना हर घड़ी उस यार का
वो नाज़नीं अदा में एजाज़ है सरापा
तुझ लब की सिफ़त लाल-ए-बदख़्शाँ सूँ कहूँगा
तिरा मजनूँ हूँ सहरा की क़सम है
तिरा लब देख हैवाँ याद आवे
तख़्त जिस बे-ख़ानमाँ का दस्त-ए-वीरानी हुआ
सोहबत-ए-ग़ैर मूं जाया न करो
शग़्ल बेहतर है इश्क़-बाज़ी का