ज़माना और अभी ठोकरें लगाए हमें
अभी कुछ और सँवर जाना चाहते हैं हम
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इश्क़ की राह में यूँ हद से गुज़र मत जाना
यूँ तो हँसते हुए लड़कों को भी ग़म होता है
फूल से मासूम बच्चों की ज़बाँ हो जाएँगे
हम ख़ून की क़िस्तें तो कई दे चुके लेकिन
छतरी लगा के घर से निकलने लगे हैं हम
फिर वही रेग-ए-बयाबाँ का है मंज़र और हम
सिगरटें चाय धुआँ रात गए तक बहसें
हम हार गए तुम जीत गए हम ने खोया तुम ने पाया
इस तरह रोज़ हम इक ख़त उसे लिख देते हैं
इश्क़ बिन जीने के आदाब नहीं आते हैं
भूले-बिसरे हुए ग़म याद बहुत करता है