उन्हें भी जीने के कुछ तजरबे हुए होंगे
जो कह रहे हैं कि मर जाना चाहते हैं हम
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Gulzar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Rahat Indori
Anwar Masood
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Sad Poetry
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Sharabi Poetry
Friends Poetry
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मुसल्ला रखते हैं सहबा-ओ-जाम रखते हैं
क्या हिज्र में जी निढाल करना
इस तरह रोज़ हम इक ख़त उसे लिख देते हैं
सब बिछड़े साथी मिल जाएँ मुरझाएँ चेहरे खिल जाएँ
हम हार गए तुम जीत गए हम ने खोया तुम ने पाया
मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं
वहाँ हमारा कोई मुंतज़िर नहीं फिर भी
आरज़ू ले के कोई घर से निकलते क्यूँ हो
तुझ से बिछड़ के यूँ तो बहुत जी उदास है
मैं जिस का जवाब न दे पाऊँ
दिन भर ग़मों की धूप में चलना पड़ा मुझे