मैं जिस का जवाब न दे पाऊँ
ऐसा भी कोई सवाल करना
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सब बिछड़े साथी मिल जाएँ मुरझाएँ चेहरे खिल जाएँ
हम हार गए तुम जीत गए हम ने खोया तुम ने पाया
इस तरह रोज़ हम इक ख़त उसे लिख देते हैं
फूल से मासूम बच्चों की ज़बाँ हो जाएँगे
वहाँ हमारा कोई मुंतज़िर नहीं फिर भी
दिन भर ग़मों की धूप में चलना पड़ा मुझे
हम ख़ून की क़िस्तें तो कई दे चुके लेकिन
आरज़ू ले के कोई घर से निकलते क्यूँ हो
इश्क़ बिन जीने के आदाब नहीं आते हैं
ब-रंग-ए-नग़मा बिखर जाना चाहते हैं हम
हमें तेरे सिवा इस दुनिया में किसी और से क्या लेना-देना
तुझ से बिछड़ के यूँ तो बहुत जी उदास है