कभी भूले से भी अब याद भी आती नहीं जिन की
वही क़िस्से ज़माने को सुनाना चाहते हैं हम
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आज तक जो भी हुआ उस को भुला देना है
इश्क़ की राह में यूँ हद से गुज़र मत जाना
हम ख़ून की क़िस्तें तो कई दे चुके लेकिन
जी का जंजाल है इश्क़ मियाँ क़िस्सा ये तमाम करो 'वाली'
आरज़ू ले के कोई घर से निकलते क्यूँ हो
मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं
तुझ से बिछड़ के यूँ तो बहुत जी उदास है
ब-रंग-ए-नग़मा बिखर जाना चाहते हैं हम
यूँ तो हँसते हुए लड़कों को भी ग़म होता है
मैं जिस का जवाब न दे पाऊँ
मैं जब छोटा सा था काग़ज़ पे ये मंज़र बनाता था
सुनो ये ग़म की सियह रात जाने वाली है