हमें तेरे सिवा इस दुनिया में किसी और से क्या लेना-देना
हम सब को जवाब नहीं देते हम सब से सवाल नहीं करते
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भूले-बिसरे हुए ग़म याद बहुत करता है
हम जो दिन-रात ये इत्र-ए-दिल-ओ-जाँ खींचते हैं
सुनो ये ग़म की सियह रात जाने वाली है
छतरी लगा के घर से निकलने लगे हैं हम
मैं जिस का जवाब न दे पाऊँ
कुछ दिन तिरा ख़याल तिरी आरज़ू रही
सब बिछड़े साथी मिल जाएँ मुरझाएँ चेहरे खिल जाएँ
मैं जब छोटा सा था काग़ज़ पे ये मंज़र बनाता था
हम अपने-आप पे भी ज़ाहिर कभी दिल का हाल नहीं करते
इश्क़ की राह में यूँ हद से गुज़र मत जाना
सिगरटें चाय धुआँ रात गए तक बहसें
आज तक जो भी हुआ उस को भुला देना है