हमें अंजाम भी मालूम है लेकिन न जाने क्यूँ
चराग़ों को हवाओं से बचाना चाहते हैं हम
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इश्क़ की राह में यूँ हद से गुज़र मत जाना
वहाँ हमारा कोई मुंतज़िर नहीं फिर भी
आरज़ू ले के कोई घर से निकलते क्यूँ हो
छतरी लगा के घर से निकलने लगे हैं हम
मुसल्ला रखते हैं सहबा-ओ-जाम रखते हैं
यूँ तो हँसते हुए लड़कों को भी ग़म होता है
फूल से मासूम बच्चों की ज़बाँ हो जाएँगे
सब बिछड़े साथी मिल जाएँ मुरझाएँ चेहरे खिल जाएँ
ज़माना और अभी ठोकरें लगाए हमें
वो सूरतें जो बड़ी शोख़ हैं सजीली हैं
जिन की यादें हैं अभी दिल में निशानी की तरह