हमारे शहर में अब हर तरफ़ वहशत बरसती है
सो अब जंगल में अपना घर बनाना चाहते हैं हम
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फूल से मासूम बच्चों की ज़बाँ हो जाएँगे
मैं जिस का जवाब न दे पाऊँ
इश्क़ की राह में यूँ हद से गुज़र मत जाना
ब-रंग-ए-नग़मा बिखर जाना चाहते हैं हम
बहुत दिन से कोई मंज़र बनाना चाहते हैं हम
जिन की यादें हैं अभी दिल में निशानी की तरह
आज तक जो भी हुआ उस को भुला देना है
दिन भर ग़मों की धूप में चलना पड़ा मुझे
वहाँ हमारा कोई मुंतज़िर नहीं फिर भी
भूले-बिसरे हुए ग़म याद बहुत करता है