सिगरटें चाय धुआँ रात गए तक बहसें
और कोई फूल सा आँचल कहीं नम होता है
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ब-रंग-ए-नग़मा बिखर जाना चाहते हैं हम
हम जो दिन-रात ये इत्र-ए-दिल-ओ-जाँ खींचते हैं
ग़म के रिश्तों को कभी तोड़ न देना 'वाली'
हम ख़ून की क़िस्तें तो कई दे चुके लेकिन
इश्क़ बिन जीने के आदाब नहीं आते हैं
हमें अंजाम भी मालूम है लेकिन न जाने क्यूँ
यूँ तो हँसते हुए लड़कों को भी ग़म होता है
उन्हें भी जीने के कुछ तजरबे हुए होंगे
सब बिछड़े साथी मिल जाएँ मुरझाएँ चेहरे खिल जाएँ
मुसल्ला रखते हैं सहबा-ओ-जाम रखते हैं
हम हार गए तुम जीत गए हम ने खोया तुम ने पाया
हमारे शहर में अब हर तरफ़ वहशत बरसती है