आज तक जो भी हुआ उस को भुला देना है
आज से तय है कि दुश्मन को दुआ देना है
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जिन की यादें हैं अभी दिल में निशानी की तरह
हम अपने-आप पे भी ज़ाहिर कभी दिल का हाल नहीं करते
सिगरटें चाय धुआँ रात गए तक बहसें
जी का जंजाल है इश्क़ मियाँ क़िस्सा ये तमाम करो 'वाली'
हम ख़ून की क़िस्तें तो कई दे चुके लेकिन
वहाँ हमारा कोई मुंतज़िर नहीं फिर भी
कभी भूले से भी अब याद भी आती नहीं जिन की
तुझ से बिछड़ के यूँ तो बहुत जी उदास है
इश्क़ की राह में यूँ हद से गुज़र मत जाना
क्या हिज्र में जी निढाल करना
हमें तेरे सिवा इस दुनिया में किसी और से क्या लेना-देना
इश्क़ बिन जीने के आदाब नहीं आते हैं