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छतरी लगा के घर से निकलने लगे हैं हम - वाली आसी कविता - Darsaal

छतरी लगा के घर से निकलने लगे हैं हम

छतरी लगा के घर से निकलने लगे हैं हम

अब कितनी एहतियात से चलने लगे हैं हम

इस दर्जा होशियार तो पहले कभी न थे

अब क्यूँ क़दम क़दम पे सँभलने लगे हैं हम

हो जाते हैं उदास कि जब दोपहर के ब'अद

सूरज पुकारता है कि ढलने लगे हैं हम

ऐसा नहीं कि बर्फ़ की मानिंद हों मगर

लगता है यूँ कि जैसे पिघलने लगे हैं हम

आईना देखने की ज़रूरत न थी कोई

ख़ुद जानते थे हम कि बदलने लगे हैं हम

इस का यक़ीन आज भला किस को आएगा

इक धीमी धीमी आँच में जलने लगे हैं हम

सच पूछिए तो इस की हमें ख़ुद ख़बर नहीं

मौसम बदल गया कि बदलने लगे हैं हम

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In Hindi By Famous Poet Wali Aasi. is written by Wali Aasi. Complete Poem in Hindi by Wali Aasi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.