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अपनी ना-कर्दा-गुनाही की सज़ा हो जैसे - वकील अख़्तर कविता - Darsaal

अपनी ना-कर्दा-गुनाही की सज़ा हो जैसे

अपनी ना-कर्दा-गुनाही की सज़ा हो जैसे

हम से इस शहर में हर एक ख़फ़ा हो जैसे

सोचते चेहरों पे जलते हुए आसार-ए-हयात

यक-ब-यक वक़्त का इरफ़ान हुआ हो जैसे

ये धुँदलके ये दर-ओ-बाम का गम्भीर सुकूत

चाँदनी रात में महताब लुटा हो जैसे

तुझ से मिलने की तमन्ना तिरी क़ुर्बत का ख़याल

रेग-ज़ारों में कोई फूल खिला हो जैसे

वही ख़ूबी वही इख़्लास-ओ-मुरव्वत के निशाँ

हैदराबाद कि इक शहर-ए-वफ़ा हो जैसे

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In Hindi By Famous Poet Wakeel Akhtar. is written by Wakeel Akhtar. Complete Poem in Hindi by Wakeel Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.