Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_26c1fcf87b49ec96407d611591771c04, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
अल्लाह ऐ बुतो हमें दिखलाए लखनऊ - वाजिद अली शाह अख़्तर कविता - Darsaal

अल्लाह ऐ बुतो हमें दिखलाए लखनऊ

अल्लाह ऐ बुतो हमें दिखलाए लखनऊ

सोते में भी ये कहते हैं हम हाए लखनऊ

ऐसा हुआ हूँ हिज्र में उस के नहीफ़-ओ-ज़ार

देखे अगर मुझे वहीं शरमाए लखनऊ

आए न मेरे पास तो मैं आप ही चलूँ

मुझ को ख़ुदा करे कहीं बुलवाए लखनऊ

कलकत्ता के हसीनों को जब देख लेता हूँ

उस वक़्त दिल में होता है सौदा-ए-लखनऊ

अब लुट गया है क्या रहा दोज़ख़ से बढ़ के है

रश्क-ए-बहिश्त कहते थे सब जा-ए-लखनऊ

ख़ुश-चश्मी आहुओं की वो भूले जहान में

देखे जो आँख नर्गिस-ए-शहला-ए-लखनऊ

गुलशन अजब बहार के हर क़स्र रश्क-ए-ख़ुल्द

और गोमती ग़ज़ब की है दरिया-ए-लखनऊ

हूर-ओ-परी को रश्क था इक एक शख़्स पर

बे-मिस्ल थे सभी मह-ए-सीमा-ए-लखनऊ

मरने के बा'द भी न मिटेगा जिगर से दाग़

जन्नत में हम को होएगी परवा-ए-लखनऊ

जब से हटा है वो तह-ओ-बाला ये हो गया

जन्नत कोई ज़रूर था बाला-ए-लखनऊ

मैं क्या कहूँ फ़क़ीरों को जो कुछ ग़ुरूर था

इक इक गदा-ए-शहर था दारा-ए-लखनऊ

हटता नहीं तसव्वुर-ए-अस्बाब-ओ-मुल्क-ओ-माल

कानों में बज रही है वो शहना-ए-लखनऊ

क्या क्या हसीं थे जम्अ' परिस्ताँ का तख़्ता था

नज़रों में फिरते हैं रुख़-ए-ज़ेबा-ए-लखनऊ

शाहों पे फ़ख़्र करते थे इस मुल्क के गदा

था मिस्ल-ए-जाम-ए-जम मय-ओ-मीना-ए-लखनऊ

हर-चंद लाख तरह भुलाता हूँ याद को

'अख़्तर' पुकार उठता है दिल हाए लखनऊ

(754) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Wajid Ali Shah Akhtar. is written by Wajid Ali Shah Akhtar. Complete Poem in Hindi by Wajid Ali Shah Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.