वाजिद अली शाह अख़्तर कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का वाजिद अली शाह अख़्तर
नाम | वाजिद अली शाह अख़्तर |
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अंग्रेज़ी नाम | Wajid Ali Shah Akhtar |
जन्म की तारीख | 1822 |
मौत की तिथि | 1887 |
जन्म स्थान | Lucknow |
यही तशवीश शब-ओ-रोज़ है बंगाले में
याद में अपने यार-ए-जानी की
उल्फ़त ने तिरी हम को तो रक्खा न कहीं का
तुराब-ए-पा-ए-हसीनान-ए-लखनऊ है ये
मुझी को वाइज़ा पंद-ओ-नसीहत
कमर धोका दहन उक़्दा ग़ज़ाल आँखें परी चेहरा
दर-ओ-दीवार पे हसरत से नज़र करते हैं
बे-मुरव्वत हो बेवफ़ा हो तुम
बराए-सैर मुझ सा रिंद मय-ख़ाने में गर आए
'अख़्तर'-ए-ज़ार भी हो मुसहफ़-ए-रुख़ पर शैदा
आज कल लखनऊ में ऐ 'अख़्तर'
ज़ोहरा सुहैल शम्स ख़ुर बद्र बहा तू कौन है
याद में अपने यार-ए-जानी की
उल्फ़त ने तिरी हम को तो रक्खा न कहीं का
सुना है कूच तो उन का पर इस को क्या कहिए
सुन रक्खो उसे दिल का लगाना नहीं अच्छा
सहे ग़म पए रफ़्तगाँ कैसे कैसे
पड़ा है पाँव में अब सिलसिला मोहब्बत का
नायाब है सुकून दिल-ए-बे-क़रार में
मोहब्बत से बंदा बना लीजिएगा
लजयाई से नाज़ुक है ऐ जान बदन तेरा
लबालब कर दे ऐ साक़ी है ख़ाली मेरा पैमाना
कभी लुत्फ़-ए-ज़बान-ए-ख़ुश-बयाँ थे
जा बैठते हो ग़ैरों में ग़ैरत नहीं आती
इश्क़ से कुछ काम ने कुछ कू-ए-जानाँ से ग़रज़
हाल-ए-दिल ऐ बुतो ख़ुदा जाने
ग़ुंचा-ए-दिल खिले जो चाहो तुम
गर्मियाँ शोख़ियाँ किस शान से हम देखते हैं
दस्तार-ए-फ़क़ीराना इक ताज से अफ़्ज़ूँ है
दिखाते हैं जो ये सनम देखते हैं