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देखने में ये काँच का घर है - वजद चुगताई कविता - Darsaal

देखने में ये काँच का घर है

देखने में ये काँच का घर है

रौशनी आदमी के अंदर है

कैसा उजड़ा हुआ ये मंज़र है

घर के होते भी कोई बे-घर है

मिस्ल-ए-यूनुस हूँ बत्न-ए-माही में

मेरे चारों तरफ़ समुंदर है

उस के क्या क्या सुलूक देखे हैं

वक़्त ही बख़्त का सिकंदर है

देखने में है वो वरक़ सादा

पढ़ने बैठूँ तो एक दफ़्तर है

रौशनी हो तो कोई पहचाने

कौन रहज़न है कौन रहबर है

साँस लेना भी मो'जिज़ा है यहाँ

ज़िंदगी आग का समुंदर है

रोज़ पढ़ता हूँ भीड़ के चेहरे

सब के चेहरे पे एक मंज़र है

उस की तस्वीर किस तरह खींचूँ

मेरा महबूब मेरे अंदर है

अपनी रूदाद मुझ को याद नहीं

दिल को लेकिन तमाम अज़्बर है

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In Hindi By Famous Poet Wajd Chughtai. is written by Wajd Chughtai. Complete Poem in Hindi by Wajd Chughtai. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.