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आप ही अपना मैं दुश्मन हो गया - वजद चुगताई कविता - Darsaal

आप ही अपना मैं दुश्मन हो गया

आप ही अपना मैं दुश्मन हो गया

तप गया सोना तो कुंदन हो गया

और निखरा सुब्ह-ए-काज़िब का सुहाग

ख़त्म जब तारों का ईंधन हो गया

किस से पूछूँ खो गई सीता कहाँ

बन का हर साया ही रावन हो गया

जब दर-ओ-दीवार चमकाए गए

घर का घर ही उन का दर्पन हो गया

बद-नसीबी क़ाफ़िले की देखिए

जो बना रहबर वो रहज़न हो गया

वो नहीं तो उन का हर लम्हा ख़याल

हर-नफ़स पर एक उलझन हो गया

माँगते फिरते हैं गुल ख़ारों से छाँव

क्या से क्या दस्तूर-ए-गुलशन हो गया

फिर न बिछड़े इस तरह से मिल गए

जैसे दो सायों का बंधन हो गया

बे-ख़याली में यूँही फैला था हाथ

जब छुआ तुम ने तो दामन हो गया

जाने क्यूँ गुम हो गई बरखा की धूप

रुख़ मिरा जब सू-ए-चिलमन हो गया

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In Hindi By Famous Poet Wajd Chughtai. is written by Wajd Chughtai. Complete Poem in Hindi by Wajd Chughtai. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.