बे-समझे न जाम-ए-ग़म पिया था मैं ने
ये काम तो जान कर किया था मैं ने
अंजाम पे थी नज़र जो रोया था बहुत
जिस रोज़ कि तुझ को दिल दिया था मैं ने
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Habib Jalib
Anwar Masood
Gulzar
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Rahat Indori
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(823) Peoples Rate This
मज़ा आता अगर गुज़री हुई बातों का अफ़्साना
नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले
बहार आई है आराइश-ए-चमन के लिए
आह-ए-शब नाला-ए-सहर ले कर
लबरेज़-ए-हक़ीक़त गो अफ़साना-ए-मूसा है
तिरे आशुफ़्ता से क्या हाल-ए-बेताबी बयाँ होगा
यहाँ हर आने वाला बन के इबरत का निशाँ आया
पैमान-ए-वफ़ा-ए-यार हैं हम
ज़ब्त की कोशिश है जान-ए-ना-तवाँ मुश्किल में है
लगाओ न जब दिल तो फिर क्यूँ लगावट
दर्द आ के बढ़ा दो दिल का तुम ये काम तुम्हें क्या मुश्किल है
छुपा न गोशा-नशीनी से राज़-ए-दिल 'वहशत'