ज़िंदगी अपनी किसी तरह बसर करनी है
क्या करूँ आह अगर तेरी तमन्ना न करूँ
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तीर-ए-नज़र ने ज़ुल्म को एहसाँ बना दिया
सच कहा है कि ब-उम्मीद है दुनिया क़ाइम
ऐ अहल-ए-वफ़ा ख़ाक बने काम तुम्हारा
सुरूर-अफ़्ज़ा हुई आख़िर शराब आहिस्ता आहिस्ता
ज़माना भी मुझ से ना-मुवाफ़िक़ मैं आप भी दुश्मन-ए-सलामत
शौक़ देता है मुझे पैग़ाम-ए-इश्क़
तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है
सीने में मिरे दाग़-ए-ग़म-ए-इश्क़-ए-नबी है
गर्दन झुकी हुई है उठाते नहीं हैं सर
लुत्फ़-ए-निहाँ से जब जब वो मुस्कुरा दिए हैं
क्या है कि आज चलते हो कतरा के राह से