यहाँ हर आने वाला बन के इबरत का निशाँ आया
गया ज़ेर-ए-ज़मीं जो कोई ज़ेर-ए-आसमाँ आया
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छुपा न गोशा-नशीनी से राज़-ए-दिल 'वहशत'
शर्मिंदा किया जौहर-ए-बालिग़-नज़री ने
जान उस की अदाओं पर निकलती ही रहेगी
और इशरत की तमन्ना क्या करें
ख़ाक में किस दिन मिलाती है मुझे
आप अपना रू-ए-ज़ेबा देखिए
शौक़ ने इशरत का सामाँ कर दिया
ऐ अहल-ए-वफ़ा ख़ाक बने काम तुम्हारा
मेहनत हो मुसीबत हो सितम हो तो मज़ा है
लगाओ न जब दिल तो फिर क्यूँ लगावट
चला जाता है कारवान-ए-नफ़स
मैं ने माना काम है नाला दिल-ए-नाशाद का