वो काम मेरा नहीं जिस का नेक हो अंजाम
वो राह मेरी नहीं जो गई हो मंज़िल को
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किस तरह हुस्न-ए-ज़बाँ की हो तरक़्क़ी 'वहशत'
लगाओ न जब दिल तो फिर क्यूँ लगावट
संग-ए-तिफ़्लाँ फ़िदा-ए-सर न हुआ
किस नाम-ए-मुबारक ने मज़ा मुँह को दिया है
और इशरत की तमन्ना क्या करें
आँख में जल्वा तिरा दिल में तिरी याद रहे
रुख़-ए-रौशन से यूँ उट्ठी नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले
तू हम से है बद-गुमाँ सद अफ़्सोस
'वहशत'-ए-मुब्तला ख़ुदा के लिए
बढ़ा हंगामा-ए-शौक़ इस क़दर बज़्म-ए-हरीफ़ाँ में
ज़माना भी मुझ से ना-मुवाफ़िक़ मैं आप भी दुश्मन-ए-सलामत