'वहशत' सुख़न ओ लुत्फ़-ए-सुख़न और ही शय है
दीवान में यारों के तो अशआर बहुत हैं
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जो तुझ से शोर-ए-तबस्सुम ज़रा कमी होगी
मुरव्वत का पास और वफ़ा का लिहाज़
कठिन है काम तो हिम्मत से काम ले ऐ दिल
अज़ीज़ अगर नहीं रखता न रख ज़लील ही रख
दिल तोड़ दिया तुम ने मेरा अब जोड़ चुके तुम टूटे को
ज़िंदगी अपनी किसी तरह बसर करनी है
क्या है कि आज चलते हो कतरा के राह से
दोनों ने बढ़ाई रौनक़-ए-हुस्न
तिरे आशुफ़्ता से क्या हाल-ए-बेताबी बयाँ होगा
जुदा करेंगे न हम दिल से हसरत-ए-दिल को
बे-समझे न जाम-ए-ग़म पिया था मैं ने
और इशरत की तमन्ना क्या करें